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20150401_BinitThakur_poem


केहन सपना हम मीता देखलौँ भोर में ।
माय मिथिला जगाबथि भरल नोर में ।।
कहथि रने वने घुमी अपन अधिकार लेल ।
छैं तूँ सुतल छुब्ध छी तोहर बिचार लेल ।।

कनिको बातपर हमरा तूं करै विचार ।
की सुतलासँ ककरो भेटलै अछि अधिकार ।।
जोरि एक एक हाथ बनवै जो लाखों हाथ ।
कर हिम्मत तूं पुत्र छियौ हम तोहर साथ ।।

अछि तोरापर बाँकी हमर दूधक कर्ज ।
करै एहिबेर तूं पुरा सबटा अपन फर्ज ।।
लौटादे हमर आब अपन स्वाभिमान ।
पुत्र कहेबे तूं महान हेतौ कर्म महान ।।

विनीत ठाकुर
मिथिलेश्वर मौवाही–६, धनुषा

4 thoughts on “भरल नोर में”

  1. ठाकुरजी तपाइँङ्काे कविताकाे
    ठाकुरजी तपाइँङ्काे कविताकाे अनुवाद नेपाली भाषामा पनि दिनु भएकाे भए अरु भाषाभाषीहरुले पनि बुझ्ने थिएर कविताकाे अास्वादन लिने थिए ।

    1. शुभकामना…
      विनीत ठाकुरजीक कविता बहुत सुन्दर अछि । ई कविता अपन माटि पानिकेँ निकसँ छुवैत अछि । एहन उर्जा भरल रचना हेतु अपने के बहुत बहुत बधाइ । आशा अछि विनीतजी जे भविष्यमें सेहो अपने उत्कृष्ठ रचना कऽ अपन भाषा, संस्कृतिकेँ पल्लवित आ पुष्पित करैत रहव ।

  2. कुरा सही हो सर, यो कुरा
    कुरा सही हो सर, यो कुरा वहाँसम्म पुर्याइने छ ।

  3. सुझावको लागि धेरै–धेरै आभार
    सुझावको लागि धेरै–धेरै आभार होम सुवेदी सर । म अव आफ्नो मैथिली रचनालाई नेपाली भाषामा पनि अनुवाद गरेर पठाउनेछु । – विनीत ठाकुर

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