केहन सपना हम मीता देखलौँ भोर में ।
माय मिथिला जगाबथि भरल नोर में ।।
कहथि रने वने घुमी अपन अधिकार लेल ।
छैं तूँ सुतल छुब्ध छी तोहर बिचार लेल ।।
कनिको बातपर हमरा तूं करै विचार ।
की सुतलासँ ककरो भेटलै अछि अधिकार ।।
जोरि एक एक हाथ बनवै जो लाखों हाथ ।
कर हिम्मत तूं पुत्र छियौ हम तोहर साथ ।।
अछि तोरापर बाँकी हमर दूधक कर्ज ।
करै एहिबेर तूं पुरा सबटा अपन फर्ज ।।
लौटादे हमर आब अपन स्वाभिमान ।
पुत्र कहेबे तूं महान हेतौ कर्म महान ।।
विनीत ठाकुर
मिथिलेश्वर मौवाही–६, धनुषा
ठाकुरजी तपाइँङ्काे कविताकाे
ठाकुरजी तपाइँङ्काे कविताकाे अनुवाद नेपाली भाषामा पनि दिनु भएकाे भए अरु भाषाभाषीहरुले पनि बुझ्ने थिएर कविताकाे अास्वादन लिने थिए ।
शुभकामना…
विनीत ठाकुरजीक कविता बहुत सुन्दर अछि । ई कविता अपन माटि पानिकेँ निकसँ छुवैत अछि । एहन उर्जा भरल रचना हेतु अपने के बहुत बहुत बधाइ । आशा अछि विनीतजी जे भविष्यमें सेहो अपने उत्कृष्ठ रचना कऽ अपन भाषा, संस्कृतिकेँ पल्लवित आ पुष्पित करैत रहव ।
कुरा सही हो सर, यो कुरा
कुरा सही हो सर, यो कुरा वहाँसम्म पुर्याइने छ ।
सुझावको लागि धेरै–धेरै आभार
सुझावको लागि धेरै–धेरै आभार होम सुवेदी सर । म अव आफ्नो मैथिली रचनालाई नेपाली भाषामा पनि अनुवाद गरेर पठाउनेछु । – विनीत ठाकुर