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ए हमर बाबु तनि करके त देख (मनोविश्लेषण)


१. भोरे उठके धरती माताके प्रणाम करी, मातापिताके प्रणाम करी । मातापिताके कष्ट दिहलजाई त दुःखी रहम । सुख दिहम त हमेशा अगाडि बढम ।

२. माताके सेवा करी, प्रसन्न रखि, तीर्थयात्रा, देवपूजन–सब पूरा होइ । बाहरसे अइलापर माई मुह देखेलिन सन्तान भुखे बा कि, बाकि परिवारकेलोग हमराला कथि लियवले बाडन उ देखेला ।

३. जीवनमे सत्यसे बडका कवनो धर्म नइखे । सदा सत्य बोलेके चाहि । सत्य–भाषणसे अपार शक्ति प्राप्त होला ।

४. आपन शक्ति अनुसार गरीब, असहाय आ जरुरतमन्द व्यक्तिके मदत करी, ओकराबाद आनन्दके अनुभूति होई ।

५. जीवनमे कवनो अइसन काम नाकरी जेसे दिनके चैन आ रातके निंद हरामहोखो ।

६. केकरोके माया करेम त माया मिलि, गरीयाएम त गारीये मिलि, ओहिसे संयम रखि । आनन्दे आनन्दके अनुभूति होई ।

७. बेइमानी केकरोसे नाकरि । ऐसे अर्जित धन राउर अपने इमानदारीसे कमाइल सम्पत्तिके भि बरबाद करेला आ सन्तानो बेइमानीये सिखेला ।

८. दोसराके अच्छाई खाली देखी, आपन हमेसा कमजोरी देखके ओकराके खत्म करेके कोशिश करी । भविष्य निश्चय हि आनन्दमय होई ।

९. चरित्र सबसे बडका पुजी ह । धन चल गइला पर फेरुसे कमाइल जासकता, बाकि चरित्र गइल त बुझि सबचिज गइल । जेतरे अ‍ैनक फुटलाके बाद टुकडा–टुकडा होला ओहितरे चरित्र गिरला पर कुछहु बा“की नारहेला । अतः चरित्रवान् बनी ।

१०. यथाशक्ति सभेके भलाई होखो सोचके काम करी । कोई विरोधी बा त ओकर विरोधके जवाब भलाइ करके दी, आनन्द प्राप्त होइ ।

११. परोपकार धनेसे खालि नाकइलजाला । ऐकर अनेक रूप बा । पियासलके पानी, भुखाके भोजन, असमर्थ व्यक्तिके ओकर घरतक पहुचाके देखी, अपार आनन्द प्राप्त होइ ।

१२. परिश्रम करी प्राणायाम करी स्वस्थ रहेम आ चैनके निद सुतेम ।

१३. जीवन अइसे बिताइ कि मरलाके बाद आदमी इ नाकहे कि ठिके भइल गइल, बडा खराब आदमी रहे ।

१४. मनुष्य अकेले जन्म लेवेला, मरेला भि अकेले, साथ जाएला ओकर कइल निमन आ खराब कर्म । बा“की सब इहे छुट्जाला ।

१५. गलती आदमीयेसे होला, गलती भइल स्वाभाविक ह बाकि कवनो गलती भइलापर गलती स्वीकार कइल महानता ह । अइसन प्रयार करी कि फेरु गलती नाहोखे । जीवन अवश्य हि मड्डलमय होई ।

१६ मानव शरीर विकारे विकारके घर ह । भगवान अनेक प्रकारसे इ विकारनके फेकेखातिर व्यवस्था कइलेबाडन । कानसे कानके मइल, आ“खसे किचर, मुखसे खकार, छालासे पसिना आदि । जनेन्द्रियसे मलमूत्र बनके विकार बाहर निकलेला आ हमनी स्वस्थ रहेनीजा । बाकि मन–बुद्धिके विकारला रास्ता बतवलन आत्म चिन्तन करेके जउन अधिकांशलोग नइखेकरत । ओहिसे आत्म चिन्तन कइल करी महान बनेम ।

१७. मानव जीवनमे समय बडा अनमोल बा, समयके दरुुपयोग नाकरी । जे समय बरबाद करेला, समय बादमे ओकरेके बरबाद करदेला ।

१८. आपन संस्कृतिके नाभुलाई । इहे राउर पहिचान ह । आपन संस्कृति, संस्कार आ भाषाके बचाएम त आवेवाला पिढी आ समाज बची ।

२०. बालबच्चा जबतक लायक नाबनेला तबतक मातापितासे जुडल रहेला । जब कवनो लायक होला, बिवाह होला ओकराबाद मातापितासे बातकरेतकके समय ओकरालगे नाहोला । तनि विचार करी आजुके जवान काल्हुके बूढो ह । आ उहे मिलेला जथि करतानीसन । मातापिताके सम्मान करेमसन त, हमनियोके सन्तानभि हमनिके सम्मान करी ।

२१. वृद्धावस्थामे अपनामे परिवर्तन लियावल आवश्यक बा । वृद्धावस्थामे बुद्धि, शरीर सब निबर्ल होजाला । मुह बन्द रखलेमे सम्मान बा । धन–सम्पत्ति केकरो भि नाह । सभि जगहमे अधिकार देखावल भूल ह । सभिकुछो त छोड्हिके बा, तकाहे ना पहिलेहि नाछोडेम ? ऐहिमे आनन्द प्राप्त होइ ।

२२. जीवनमे प्रत्येक व्यक्तिके सुख–दुःख भोगेके परेला । कष्टके समयमे एकराके सहर्ष स्वीकार करी आ अपनाके एकर जिम्मेवार सम्झी । यदि निमन दिन आइल त ओकराके भगवानके कृपा मानी । आपन सम्पत्ति, परिवार, बलके घमण्ड नाकरी । हमनीसे का भूल होला कि सुखके आपन पुरुषार्थ आ दुःखके भगवानके देहल मानेनिजा ।

२३. राउर सब प्रतिष्ठा एवं विद्वतारूपी सम्पत्तिके ख्याति रउवा चुप रहेम तबो लोगके मालुम होजाई । मूर्खलोग हि सब किसिमके योग्यताके प्रचार करेला । नतिजा इ होला कि उ कहियो भि सम्मानके पात्र नाबनेला, उल्टे सबके हसिके पात्र बनजाला ।

२४. मुहवे भात खियावेला आ मुहवे लात खियावेला हमनी सब जानतानी जा ओहिसे जिभपर नियन्त्रण रखल बहुत जरुरी बा । जे जिभपर नियन्त्रण रखे सकि ऊ हमेशा सम्मानित आ स्वस्थ रहि । रसना, वाणी आ उपस्थके संयम महान् साधना ह । संयम स्थापित करके देखी, जीवन आनन्दमय होइ ।

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