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छओ टा शहीद (लघुकथा)


चारू दिश सूनसान अछि । गाडीयोसभक आवाज बन्द भऽ गेल अछि । राति नि:शब्द भ ऽ रहल अछि ।

लेखक लिखबामे मस्त अछि । बिजली नइँ अछि । पंखा घुमि नइँ रहल अछि । इन्भटरक इजाृतमे ओ शब्द चुबा रहल अछि । पसेनासँ ओ नहा गेल अछि । लिखबाक धुनमे पसेनो पोछबाक ओकरा फुर्सति नइँ अछि ।लिखिरहल कापिओ भिजिरहल अछि । ओहि कोठलीमे हवा पैसनाइ पर रोक अछि ।

हवाक सँग मच्छडो पैसबाक पुरे सम्भावना अछि आ तएँ केवाड नइँ खोलबनक चेतावनी दैत पत्नी रात्रि विश्राममे अछि ।

ओ गामक नारी छथि । शहरमे आएल छथि । ओ मच्छडसँ डराएल छथि । डराइते डराइत ओ सुतबनक प्रयास करैत छथि । देखिते देखिते हुनकर ठडड पारबनक आवाज लेखकक कानमे पहुँचैत अछि, मुदा ओ अन्ठा दैत अछि ।पहिनेसँ कोठलीमे पैसि चुकल कीडा फतिङ्गा इन्भर्टरक ओहि इजोतमे भौंकी मारिरहल अछि । मुदा लेखककें तकरो परवाह नहि अछि । असगरे ओ जोताएल अछि । कलम रुकए नइँ चाहिँ रहल अछि । कखनो काल ओ देह कछमछ करैत अछि । मुडी हिलबैत अछि । मसदा कापीसँ हाथ उठबए नइँ चाहैत अछि ।

गर्मीसँ छटपटाइत पत्नी उठैत छथिन्ह । देखैत छथि, तल्लीनतापूर्वक मस्त भावमे डुबल पतिदेवकें । नजदीकेमे जाइत छथि,पतिकें पता नइँ लगैत छन्हि । शरीर पसेनासँ बोदम बोद अछि । आओरो नजदीकसँ निहारैत छथि ।ओ आश्चर्यमे पडि जाइत छथि । तुरन्ते हाथ उठबैत छथि आ पतिदेवक बाँहि पर कसि कऽ थापड मारैत छथि ।लेखकक तन्द्रा भङ्ग होइत अछि । ओ क्रोधित नजरसँ पत्नी दिस ताकैत अछि ।

“छओ टा शहीद भेलै एकै ठाम ।” आवाज सुनि लेखक हतप्रद होइत अछि ।

शहीद, केहेन शहीद । के शहीद ! कस्तो शहीद ! कि सपना देखिरहल छी !” लेखक भयभित होइत अछि ।

आब फेरो राज्यकोष खाली हएत । १० लाखक दरसँ १० गोटेक ६० लाख चल जाएत “। ओ एक्के साँसमे मनक गप उगलि देलक ।

पत्नी मुस्किआइ छथि । नीचाँ देखबाक सङ्केत करैत छथि । लेखक आँखि गुडारि कऽ देखैत अछि । किछुओ नइँ देखैत अछि ।

“ई देखु त ! एक टा शहीद ! दुई टा शहीद ! तीन टा शहीद…..!” पत्नी गनैत जाइत छथि । ध्यानसँ देखलक आृ आ ई तऽ छओटा मच्छड मरल अछि ।

नन्दलाल आचार्य
तपेश्वरी–१, गल्फडिया, उदयपुर

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