हे हंसवाहिनी विद्या के दाता
अहिँ हमर गुरु अहिँ छी माता
अहिँ सँ जग मे ज्ञानक भोर
गणेश, लक्ष्मी आवे संग तोर
एक हाथ वीणा, दोसर मे पुस्तक
आवे ईजोत परैत अहाँक दस्तक
पवन मे अहिँ सँ शूर मे तान
अहिँ सँ उब्जल अछि काव्यनाद
सागर मे संगीत बहैय अहिँ सँ
पंक्षि सारेगम गवैय अहिँ सँ
शिवक डमरु मे डिमिडिमि अहिँ सँ
उर्वशी के नृत्य मे ताताथैया अहिँ सँ
हर विधा के रचैता अहिँ छी
फूलक रौनक आ गमक अहिँ छी
जराकऽ भूवन मे विवेकक दीप
विन्ती करै छी करियौ सभक हित ।
सुधा मिश्र
जनकपुरधाम – ४
प्रदेश नं. २, धनुषा
म मैथिली बोल्न नजान्ने भए पनि
म मैथिली बोल्न नजान्ने भए पनि यो रचना राम्रो गरी बुझ्न सकें । यसका लागि बैनीलाई धन्यवाद । यस्तै रचना सुन्न पढ्न पाइरहुँ ।
Parnam..Bahut Bahut
Parnam..Bahut Bahut dhanyabaad sir..Aahina apne ke comment pabait rahi