‘मातृभाषा’ आ ‘मातृशक्ति’ दुई पृथ्थक बात होएत छैक । ‘मातृभाषा’ (माय केँ बोली) कोनो भी व्यक्ति केँ लेल संचार केँ प्रथम माध्यम होइत छैक । ‘मातृशक्ति’ (नारी आ देवीभक्ति सँ जुडल) महिमा मण्डन आ स्तुतिगान सँ सम्बन्धित छैक । अंग्रेजी मेँ ‘मातृभाषा’ केँ ‘मदर टङ’ आ ‘मातृशक्ति’ केँ ‘मेटरनल पावर’ के रुप मेँ परिभाषा कयल छैक । हमरा विचार सँ एतह ‘मदर’ आ ‘मेटरनल’ के अर्थ फरिछाबे पडत से नय बुझाएत अछि । हाँ, ई कही दि जे एकटा माय (मदर) सँ जुडल अछि दोसर मामा (मेटरनल अंकल) सँ जुडल बात छैक ।
मिथिला मेँ ‘माय’ आ ‘मामा’ फरक बात छैक । एशिया केँ विभिन्न भाषा साहित्य मेँ (खास कँके नेपाली, मैथिली, भोजपुरी, हिन्दी लगायत ) ‘मातृशक्ति’ केँ प्रयोग काली/दुर्गा, मातृभूमि आ नारीशक्ति केँ रुप मेँ कएल छैक । लेकिन ‘मातृभाषा’ के ‘मातृशक्ति’ के रुप मेँ कतौह प्रस्तुति नए देखबा मेँ आएल अछि । जौ कियो साहित्यकार ‘मातृभाषा’ के ‘मातृशक्ति’ केँ रुप मेँ व्याख्या करैत छथि, त ओ बलजोरी मात्र कए रहल अछि, बलजोरी मेँ सभकुछ माफ होएत छैक ।
भाषा जौ ‘मातृशक्ति’ रहितिए त मिथिला क्षेत्र मेँ दहेज, डायन, विधवा, एकलनारी आ बेटी केँ नाम पर एतेक बेसी ‘मातृ’ सभ के उत्पीडन आ विभद केँ सामना नए कर पडतिए । भाषा जौ ‘मातृशक्ति’ रहितिए त मिथिलानगरी मेँ पुरनका सत्ता केँ किछु मतियार सभ ओए ‘सत्ताजाति’ के ‘सत्तापुरुष’ जकाँ जबरजस्ती अपन संस्कृति आ पहिरन केँ ‘मिथिला के कथित शान’ केँ रुप मेँ सभ केँ माथ पर भारी(पाग) नए लाधि देतिअए ।
जौ भाषा ‘मातृशक्ति’ रहितिअए त कुमरबृज भान, अल्हारुदल,गोपीचन्द,सलेह नाच, कठपुतली नाच,डम्फा बसुली नाच, खदन चिडइया नाच, लोकगाथा, लोकनृत्य…….सभ नई बिला जाइतिए । मातृशक्ति केँ ई अर्थ किन्नौह नए जे, एकैहटा जाति विशेष केँ पहिरन सभ के माथा पर लगा दिअउनि, एकैहटा जाति विशेषक पर्व/तौहार केँ समग्र मिथिला क्षेत्र के नरनारी के मौलिक पर्व केँ रुप मेँ प्रचार कएदिअउनि, होली के नाम पर आयातित संस्कृति(महामुर्ख सम्मेलन) के अपना लिए…..।
अंग्रेजी साहित्य में सेहोँ भाषा केँ रुप मेँ सोह्रेआना ‘मातृ शक्ति’ कँ प्रयोग नए कएल गेल छैक । हाँ, कतौह–कतौह भाषा सँ मिलए बला दुइटा शब्द (सिङ्क्रोनिक आ डायक्रोनिक) के प्रयोग कयल गेल भेटैत छैक । ओहो भाषिक विश्लेषण के रुप मेँ मात्र । ‘सिङ्क्रोनिक एप्रोच’ मेँ कोनो एकटा भाषा के इतिहास केँ चर्चा नए कए वर्तमान अवस्था केँ जिक्र करबाक बात छैन । एही में वर्तमान समय में कोनो भाषा कें विशिष्ट विन्दू के चर्चा होबाक बात उल्लेख छैक । ‘डाइक्रोनिक एप्रोच’ में ऐतिहासिक भाषिक पर जोड दैति छैक । एही में विभिन्न कालखण्ड मेँ परिवर्तित भाषा केँ केन्द्र मेँ राखल गेल छैक । मुदा ‘मातृभाषा’ के ‘मातृशक्ति’ के रुप मेँ स्पष्ट रुप सँ उल्लेख केल कतौह नए भेटैत छैक । एहीँ विषय केँ हम एकटा अनुशन्धान केँ रुप मेँ लँ रहल छि । जौँ किनको पास एही विषय मेँ थप जानकारी हुए त अबगत कराबी, सदैव अभारिरहब । अखन हम ऐतबे कहब ‘मातृभाषा’ विल्कुले ‘मातृशक्ति’ नए थिक ।
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