Skip to content

हाइकु अन्तरिक्षक एकटा नव उपग्रह : वसुन्धरा

20201202_RambharosKapariBhramar-Lekh


गढिकऽ रचना करब हमरा कहियो नीक नहि लागल । हम ओहन रचना के गढ़ब बुझैत छी जाहि मे लेख्य अनुशासनक बात कहल जाइत होइक । यथा गजल लेखन, कोनो विशेष अवसरक गीत लेखन आ कविता लेखन । आब त तेहने काव्य अनुशासनक परिधि मे रहि नव प्रयोग हाइकु लेखन आयल अछि ।

मैथिली भाषाक क्षेत्र मे सेहो हाइकु बेस लोकप्रिय भेल जा रहल अछि । जापान सँ आएल ई काव्य विधा हिन्दी, नेपाली होइत मैथिली भाषा मे सेहो प्रयोग होमय लागल अछि । एहि विधा के पुस्तकाकार प्रकाशन होइत अछि ।

कहल जाइछ जापानी कवि आरकिन्दा मोरिताके ( १४४२ – १५४० ई. ) मे पहिल बेर हाइकु लिखलनि, यद्यपि तहिया एकरा ‘हाइकाइ’ कहल जाइत छल । हाइकु त बहुत बाद मे नामकरण भेल । मोरिताकेक हाइकु देखू :–

खसल फूल
डाढि पऽ घूरत की
देख, तितली । ( मैथिली अनुवाद )

नेपाल मे हाइकु लिखनिहार नेपाली कविक कमी नहि अछि । ओना वि.सं. २०१९ साल मे शंकर लामिछाने ‘रुपरेखा’ पत्रिका मे पहिल बेर हाइकु कविता प्रकाशित करौने छलाह ।

तखन ‘वसुन्धरा’ हाइकु संग्रह पर विचार करबा सँ पूर्व हाइकुक काव्य अनुशासन पर ध्यान दी त उत्तम रहत । हाइकुक काव्य अनुशासन पर अपन विचार रखैत डा. जगदीश व्योम लिखैत छथि :–

१= हाइकु सत्रह वर्ण मे लिखल जाय बला सब सँ छोट कविता थिक । एहि मे तीन पाँति रहैछ, जाहि मे पहिल ५ वर्ण, दोसर मे ७ आ तेसर मे फेर ५ वर्ण ।
२= संयुक्त वर्ण सेहो एक्कहि वर्ण मानल जाइत अछि ।
३= किछु हाइकुकार एक्कहि वाक्य के ५ – ७ – ५ वर्ण के क्रम मे तोडि़ कऽ लिखैत छथि जे सर्वथा गलत अछि ।

वास्तव मे प्रकृतिक मनमोहक चित्रणक हेतु हाइकु एकटा सशक्त विधा मानल जाइत अछि । कम शब्द मे ‘घाव करत गंभीर’ सन भाव मे समेटने एकटा पूर्णताक बोध करबैत अछि हाइकु ।

हमरा समक्ष मे मैथिली आ नेपाली साहित्यक अत्यन्त प्रखर, उत्साही, तिरहुता लिपिक अभियानी विनीत ठाकुरजीक हाइकु संग्रह ‘वसुन्धरा’क पाण्डुलिपि राखल अछि । प्रकृतिगत चित्रण हो अथवा जीवनक कोनो यथार्थ सन्दर्भक आकलन । सुन्दर, सटीक आ भाव दिश गंभीर बला अर्थ के सार्थक करैत हाइकु के जोहने छथि । हम हुनक मेहनत आ लगनशीलता के पूर्वे सँ प्रशंसक रहलहुँ अछि आ एहि हाइकु संग्रह सँ त आओर बढ़बे कएल अछि ।

हुनक हाइकु के प्रकृति पक्ष मजबूत छन्हि । छोट शब्द मे प्रकृतिक जे सौन्दर्यक व्याख्या हुनक हाइकु मे आएल अछि ओ मुग्धकारी अछि । किछु हाइकु के देखि स्वतः एकर भान भऽ जाएत :–

वर्षाक बुन्द
इन्द्र धनुषी रुप
धन्य प्रकृति ।

प्रचण्ड गर्मी
छटपट दादुर
भथल कूप ।

उपर के किछु पंक्ति मे जेना प्रकृति सजीव भऽ आगा मे ठाढ़ भऽ गेल हो । कूप मे बास बनौने बेंग प्रचण्ड गर्मी सँ सुखल अपना बासक अभावे कोना छटपटा रहल अछि, एहि दृश्यबिम्ब के ठाढ़ करैत कवि ( हाइकुकार ) सम्पूर्ण परिवेश के जीवन्त कऽ देने छथि ।

कचबचिया
करैए कचबच
पहर बोध ।

विशुद्ध गाम–घरक अप्पन सांस्कृतिक परिवेश आ तकरा परम्परागत मान्यताक शब्द मे रुपान्तरण । हम मुग्ध छी एहि कविक बिम्बक पकड़ आ तकर सन्धान पर । विनीतजी खूब समधानि कऽ मैथिली काव्य साहित्य जगत मे हाइकुक स्थापना कएलनि अछि ।

मनुक्खक आम जिनगीक पल–पल घटैत घटना आ तकर प्रभावक मूल्यांकन कतौ एहनो भऽ सकैछ :–

मगरमच्छ
दयालु साधु लग
बहाबे नोर ।

हाइकुक शब्द अनुशासन के बेसी हद धरि आत्मसात करैत प्रकृति आ मानवीय धरातलक सूक्ष्म तरंग के अपन शब्दक तूलिका सँ जाहि तरहेँ हृदयग्राही विधाक निर्माण कएलनि अछि – मैथिली साहित्य हुनक एहि शब्द कौशल सँ समृद्ध भेल अछि । हमरा लगैत अछि आबऽ बला समय मे हाइकुक सूक्ष्म अन्तरिक्ष मे विचरण करैत बहुतो नामधारी ग्रह–उपग्रहक मध्य विनीतजीक ई नवका उपग्रह ‘वसुन्धरा’ पठनीय आ संग्रहणीय कृतिक रुप मे समादृत होयत से हमरा विश्वास अछि ।

रामभरोस कापडि ‘भ्रमर’
पूर्व सदस्य
नेपाल प्रज्ञा–प्रतिष्ठान
कमलादी, काठमाण्डू

मिथिलाक्षर (तिरहुता) आ देवनागरी दुनु लिपिमे प्रकाशित कृति ‘वसुन्धरा’ हाइकु संग्रह सँ साभार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *