साथीत्त्वको नात्तै तोडी
गयो तिमी माया मारी,
हेर्दा खोज्दा नदेख्ने गरी
सयौ सयौ खोला पारी !
निश्चल थियो मेरो माया
गयो तिमीले माया मारी
ओभानो यो आखाबाट
साउनको भेल झैँ आशु झारी !!
नफुल्दै साथीत्त्वको फुल ,
गयो तिमी माया मारी
फक्रिदै थियो कोपिला मित्रताको
छोड्यो मलाई बाजै पारी
फक्रिदै थियो कोपिला मित्रताको
छोड्यो मलाई बाजै पारी …
राजेश रुम्बा लामा “अतृप्त”
दोहा कतार
गम कुछ कम नहीं हुए तुझसे
गम कुछ कम नहीं हुए तुझसे मिलने के बाद मगर
दिल में इक हौंसला सा है कि कोई मेरे साथ तो है
कांटे मेरी राहों के हरसूरत मेरे हिस्से में ही आयेंगे
गर इक गुल है मेरे साथ तो जरूर कोई बात तो है
मुझे आज तक जो भी मिला,मशक्कत से मिला
तुझ से मिलने में मेरी तकदीर का कुछ हाथ तो है
अंधेरे कहां समझते हैं भला मशाल के जलने का दर्द
वजह कोई भी हो हर सूरत में दोनों की मात तो
मैले पर्ती उतर पाउने ठेगाना हो नेपाल को अर्घाखाँची अरब को कतारी अल अत्तिया बजारमा सलाम दिन सुकुम बासी