Skip to content

कमजोरी समाजक आओर शैक्षिक जगतके !

  • by


पत्रात्मक निबन्ध

प्रिय चेली,

सन् २०१२ क मार्च ८ काल्हि मात्रे छल आ सेहो काहिल्ये खतम भेल । पैघपैघ नेतानेतृ आ नीति निर्मातासभ भव्य मञ्चपर भव्य बातचितसभ केलाह । ओ बातचितसभ आलिसान महलक मखमली विस्तरापर बैसक कयल गेल छल । ओ हुनकेसभक लेल छल । तोरा आ हमरसभक लेल नहि छल । ओ अहङ्कारीसभक ललिपप चटाबैबाला गप्प छल । छल, ओसभ एके बेर उठाक छतसँ जमिनपर खसाबैबला बात ।

प्रिय चेली ! तोरा ई शब्द सुनाबाक कोनो अर्थ नहि छै । सार्थकताविहीन, निरर्थक शब्दसभक रास लगाबैत छी । घर जरिगेलाक बाद दमकल बजाबक कोनो अर्थ नहि होइत । मोनों बुझेवाक प्रयत्नस्वरूप मोन खोलैत छी । सिकल सबकसभ फैलाबै छी । ‘आब सोचि समैझक आगु बढ, नहि त तोरा सनक पैघ अपराधी आओर दोसर कियो नहि होइत ।’ यी बात सम्बन्धित पक्षके कहै छी । मुदा चेली ! ताें जे छलाह, तों जे केलाह, ओ अति कठोर छल । ककरो जीवनमे ओ सँ कठोर दोसर निर्णय आओर किछु नहि होब सकैत छी । दुनियाँके त्रासदीमें जाकैबला घटना छल ।

आबसँ हम याद नहि कर चाहै छी । हम रत्तिभैर मोनमें आन नहि चाहै छी । हम पूराके पूरा पक्षसभके एकै बेर बिर्स चाहै छी । अपन दिमागके शुद्ध आ सादा बनाव चाहै छी । हम चाहिक कि करूँ ? मोनों बड विचित्रक छै । जकरा बिसर चाहै छी, ओही चिज आगु आबि जाइत अछि । । ओही चिज चारुकात घुमि जाइत अछि । दुर जाइल चाहलापर, असफलता मात्रे हात लागैत अछि ।

जखन ओ दृश्य आगु आबैत अछि, जखन तों मोनक आगु आबि जाइत छह, मोनों जोडजोडसँ कानैत अछि । मोन राखि नहि सकैत अछि । मुस्किलसँ दबाक राखैत छी मुदा अश्रुधाराक बर्षात कियो रोक नहि सकैत अछि । कियाकिया हम आपने आपके सम्भाल नहि सकैत छी । हमरा थाहा नहि छै । हमर लहुके सम्बन्ध अहि समाजसँ नहि अछि आ नहि छल । ककरो सँगमे नहि अछि आ नहि छल । मुदा, भावनाके विराट सम्बन्ध छल । लहुके सम्बन्धसँ भावनाक’ सम्बन्ध कयौँ गुणा विशाल होयत अछि । अभावमें माया-ममता बर्षैत अछि । यतेक ज्यादा विक्षिप्त मनोदशा होबामें कोनो कारण अवश्य अछि । भ’सकैछे कोनो जन्ममें तों हमर सहोदर बहिन छल, हमर दिदी छल, नहि त बेटियै छल । हमर मोन बाजिरहल अछि । मोनक चीज किछु सत्य होब सकैत अछि मुदा ज्यादातर असत्य होइत अछि । ई बात पक्के ओहि कोनो सत्यताक भितर पर सकैत अछि । नहि त मोन किया एना जरैत अछि, तडपैत अछि आ छटपटाइत अछि ।

चेली ! तोहर निर्दोष चरित्र याद करैत छी । सबके अपने परिवारजन बुझैके तोहर निस्पक्ष भावनाके याद करैत छी । तोहर ओ निष्कपट चञ्चलता आ शिष्ट व्यवहार महसुस करैत छी । बिस्रके भानमे हरा चाहलोपर नहि सकैत छी । हम कि करूँ ? कह चेली ! हम कि करूँ ? तोहर यादमे छटपटाइत नहि रैह क हम कि करूँ ? हम मोनसँ तोरा कागजपर लिखैत छी । सदाके लेल बिस्र एना करैत छी । केबल एक बेर लिखलाक बाद फेर कहियो नहि लिखैके सोचपर उतरल छी ।

धिक्कार अछि, लाजपचल निर्लज्ज समाजके, गतिछाडा शैक्षिक नीति आ भ्रष्ट प्रशासनके ! धिक्कार अछि हमरापर, धिक्कार अछि अहाँपर ! एखन तोहर प्रेमपूर्ण लवज आ निर्दोष आवाज हमरा झकझकारहल अछि, जगारहल अछि, बेचैन द’रहल अछि । कतौकतौसँ हम ओही शब्दसभ सुनिरहल छी- ‘सर ! हमर परीक्षाके रिजल्ट भेलै । हम पास भेलियै या नहि ! कनि अहाँके ल्यापटप सँ ताकि दिअ त !’

तोहर बोली बेरबेर सुनिरहल छी । जेना लागैत अछि, एखनो चारुकात गुञ्जैत अछि । लाइन नहि छल, ल्यापटपमे चार्च कम छल । लेख लिखैत छलहुँ । हम कहने छलहुँ- ‘रुकु, अखेन सम्भव नहि अछि । लाइन एतै साँझमे, तखन देखदेबै । साँझमे लाइनके वाद आऊ ।’ तों ‘होयत’ कहैत चैल गेला । साँझमे नहि एलहक । किया नहि एलहक ? कारण हम नहि ताकलहुँ । ककरो नहि पुछलहुँ । कतौ देखने हेबहक । मोन बुझेलहुँ । फेर कहियो नहि एलहक आ आब कहियो नहि एबहक । नहि आबैक रह त कियाक ‘होयत, आयब’ कहलक ! दोसर दिन मधेसके होलीके दिन, ‘ताकि दिअ’ कैहते एबहक त नेटमे रिजल्ट देखदैके विचारमे छलहुँ ।

फागु पूर्णिमाक बादक दिन छी आय । काल्हि मस्तसँ मधेस फागुमे झुमल । अनेकन काज केलक । कतहुँ परम्परा बचेलक । कतहुँ विकृति भित्रेलक । मुदा, तोँ कि करैत छल, से हमरा नहि बुझल अछि । तोहर छोटका भाय बाल्टिनभैर रङ्ग घोरिक साथीसभकसँङ्गे होली खेलायत छल । हमर बेटी गरिमा सामिल छल । हम आ लक्ष्मी देखनीहार छलहुँ । तोहर जेठ भाय कत छल, से हम नहि देख सकलहुँ ? मुदा, दोसरक फागु तोराल सराप बनल छल । दोसरक खुशी तोराल आँसु बनल छल ।

आई शुक्रबार, कक्षा-३, ५ आ ८ क जिल्ला स्तरीय परीक्षाके तयारी करबाकलेल हम विद्यालय गेल छलहुँ । परीक्षा त नहि छल मुदा प्रवेशपत्र वितरणके काज छल । विद्यार्थीके जिज्ञासा समाधानक समय आ सामान्य सोधखोज करैला समय छल । यत लेखापालसभ अपन काजमे जुटल छल, हम भी व्यस्त छलहुँ । ओत तोँ दोसरे त्रासद काज करैलिही । कतैक आश्चर्य ! कोमल आ निर्मल हृदयसँ ओतक कठोर निर्णय करैल कोना सकलिही ! हमरा विश्वास नहि होइत अछि । हम अपन अधिकार उपभोग करबे करब ! आँखासँ अवलोकन आ कानसँ सुिनहार सब बातचित हरपल सत्य नहि होइत अछि । एकाध बातचित असत्य सेहो भ’सकैत अछि । ओ एकाध बातचितमे ई बातचित सेहो परैत, हात जोडै छी, बिन्ती करै छी । मुदा ई बात, बातमे मात्रे सीमित भ’गेल ।

प्रिय चेली ! कियाकी हम तोहर घर लग डेरा नेने छी । तोरा प्रत्यक्ष-परोक्ष रूपसँ ता-थै, ता-थै चलैत कालसँ चिनने छी, बुझने छी । विशेषतः तोहर पिता आ भाइसभक करिब छी । शैक्षिक मामलाके ल’क नितान्त करिब ! फेरो घुरिक अगर एबह त केवल ५ मिनेट हमर आगु ठाड भ’क बातचितमे सामेल होइतहक त हम पुछितिअ । बहुत, बहुत बात पुछितिअ । ओ बातचित हम स्पष्ट बुझैत छी । हमर पुछल प्रश्न आ तोहर देल जवाब एहेने-एहेने होइतै ।

प्रश्न ः प्रिय चेली ! तों एहेन त्रासद निर्णय किया लेलहक ?

उत्तर ः लेबाक इच्छा भेलासँ नहि, लेबाक वाध्यता सँ । मुह देखाब लाज होय त मुह नुकेनाई ठीक !

प्रश्न ः ‘सफले-सफलक दुनियाँ छै त ‘असफल’ किया बनल ?

उत्तर ः शब्द ‘असफल’ बनल, ओ ओकर काज थिक । हम सफल नहि होब सकलौँ, असफल होब नहि मानलहुँ । असफलता जीवन थिक से नहि बुझलौं ।

प्रश्न ः एह समयतक सफलताके जीवन ठाननिहारके असफलता सेहो जीवनक एकटा अङ्शक रूपमे लेबाक चाहि न, नहि त ?

उत्तर ः हम काल्हितक असफल भेले नहि छलौ । असफल कुन चिडिया’क नाम थिक, सेहो हमरा नहि बुझल छल । हमरा त एतेक बुझल अछि- ई जगत् असफलसभक नहि थिक । एत सफलसभ मात्रे हँस सकैत अछि । असफलसभक कानैल तक सख्त मनाही अछि । ई मनाहीके हम तोड नहि सकलौ । जित नहि सकलौ, हार नहि मानलौ । जितैयेके लेल जीवनके पछारलहुँ आ मुक्तिके श्वास फेरैके निर्णय कैलहुँ ।

प्रश्न ः कि तों आब सफल भैली त ?

उत्तर ः सफल ! हम सफल छी । हम बच्चेसँ जे सिखलौ, हमर मोनमे जे वास लेलक, ओ हमरा कठोर तवरसँ सफल बनैपरैछै, कहिरहल अछि । हम सफल बाहर जीवन नहि देखैत छी ।

प्रश्न ः जकर मोन शुद्ध अछि, जकर कार्यशैली निर्दोष विचारधाराद्वारा निर्देशित अछि, ओ सफलता प्राप्तिके रस्ता सेहो स्वच्छ तवरसँ चुनैत अछि । तों सेहो ओही रास्तापर चललहक । मुदा, आइकालि दायाँबायाँ क’क चलनिहारसभ मात्रे सफल होयत अछि । तोरा जेहेने सोझ राजमार्गपर चलनिहारसभ भड्खारामे जाकल गेल अछि । नहि त, चेली ?

उत्तर ः सर, आओर कि कहैत अछि, ठीक कहैत अछि या बेठीक कहैत अछि ? वर्तमान केहेन अछि, कत खतरा अछि, कोना चलपरैत अछि, ओ सभक ज्ञान हमरा कोनो पुस्तक नहि देलक । कोनो शिक्षकशिक्षिका नहि देलक । केबल जित परैके विचार देलक । केवल शिर उठाबला गौरव आर्जनक बात सिखेलक । दुःख’क पीडा सहैल कियो नहि सिखेलक । हम जे सिखलहुँ, सेह केलहुँँ । शिर झुकाबैसँ उच्चे करनाई ठीक बुझलहुँ ।

चेली ! तोहर विवसताके हम कि उपमा दिअ ? तोँ रस्ता चुनलह ओकरा हम कोना ठीक कहि दिअ ? तोँ ई पाखण्डी समाजके पूरातन विचारधारासभक लेल चुनौती थपिदेलहक । हमरा धर्मसङ्कटमे ध’देलौ । कियाकी हमहुँ एकटा शिक्षक नामक जीव छी । मानवके मानव होबसँ बञ्चित करनिहार आ पशु होब प्रोत्साहित करनिहार शिक्षणसंस्थाक पाललपोसल बलीक बकरा छी । कखन केहेन काज करैछे, ओ संस्थाक हितमेँ विवेक दबाक कर परैत अछी । सब चिज मिलाक शिक्षाशास्त्री कहलगेल आ रावणराज-महाराजक आज्ञाकारी सेनापति छी । तोहर विवस कहानी सुनिक आ बुझिक सोच नहि सकिरहल छी । के, कत, किया चुकल नहि कह सकिरहल छी । तोहर अन्तरवार्तामेँ अघोषित रूपमेँ अङ्कित कयल गेल प्रश्नक जवाफ की भेटत । दुनियाँ कोना ठीक मार्गमे आयत, ओ आइ बुझैके अछी । नितान्त वैयक्तिक ढङ्गसँ ! नितान्त एकान्त सोचसँ !

मुदा, जे कह चेली ! हम विश्वस्त नहि छी । हम कदापि सहमत नहि छी । तोरा हमरा डेरा आगु चहलपहल करैत चलैत देखरहल जेँका लागैत अछि । तोहर मासुम भाइसभक निर्मल मुह आँसुसँ भिजल हम कल्पना नहि कर सकैत छी । ओसभ सब दिन हमरा डेरा आगु मोन खोलिक क्रिकेट खेलायत छल । सामान्य होहल्ला करैत छल । हम ओकरेसभक शिक्षक भेलाक बाबजुतो ‘हमरा बाधा पहुँचाबै जेकाँ होहल्ला नहि कर’ नहि कह सकैछलौँँ । बरू बालचञ्चलताक असली दर्शक बनिक देखैत रहैछलौँ । दोसर आनन्द तखन जुडिजाइत छल जखन हमर पुत्री गरिमा सेहो ओ खेलमेँ सम्मिलित भ’जाइत छल । ओ खेल खेलाइत त नहि सकैछल मुदा होहल्ला करैमेँ मद्दत जरुर पहुँचाबै छल । हमरा दोसरे ढङ्गसँ आनन्द एलोपर कलेजमेँ पढाबैबला खोराक जुटेबाक काजमेँ बाधा परिरहल छल । हमर डेरा-मालिकाेँ ओ बाल्यलीला देखिक मुस्कुरा रहैत छलाह ।

चेली ! तोँ घरसँ ताकित रहैछलिह ! भाइसभसँ वाधा भ’क बात बुझिक कहै छली- ‘बौवा सभ ! हल्ला नहि कर । सरके लिखपढमे बाधा पडै छै । चुपचाप खेलाह न ! अपनाके आनन्द लैला दोसरेके दुःख पहुचैना निक बात नहि अछि ।’

चेली ! आब कह ! तोरामेँ केहेन मोनकारी लक्षण छल । तोरामेँ संसार हँसाबैक आ खुसी राखैक तागत छल । तोहर बोली आ व्यवहार सुनिक आ पाबिक सब खुस होयत छल । हमरा नहि बुझाइत अछि- तोरासँ कियो प्रताडित छ, ककरो मोन दुखायल छल । भेलै, आब हम तोरासँ बेसी बातचित करबाक पक्षमेँ नहि छी । तोँहोर पकडल रस्ता आजुक समाज, शिक्षा नीति आ शैक्षिक प्रशासनक गालापर थप्पड मार अग्रसर होयत छी ।

हमरा बुझल अछि- याह किच्चक समाज, याह भ्रष्ट शैक्षिक नीति आ याह अराजक शैक्षिक प्रशासन तोहर जानक दुश्मन छल । हम ठोकिक कहै छी । तोहर जीवनलीला’क अन्त करैबला समाज, नीति आ प्रशासन थिक । एकरे भितर सभ चिज नुकायल अछि ।

चेली ! तोरा ई पूरापूरी बुझल छ । हम तोहर साथीसंगीसभके आ सरोकारवाला पक्षके लेल लिखैत छी । ई शब्दसभ जोडिजाडि लिखैत काल हमर मुटुमे खुन गरम भ’गेल अछि । शरीरक राँैसभ ठाड भ’गेल अछि । अपराधबोधसँ मोनक एकटा कोना अन्हार अछि । ‘कपट आ जाली बातचित लिख-लिख’ कहैत अछि । मुदा, रामोराम सत्य प्रकट करैक कोशिस करैत छी । हम तोहर विवस कहानी तोरा मार्फत् दुनियाँके सुनारहल छी ।

ओकर भाषा त हमरा नहि आबैत अछि । मुदा ई पापिष्ठ शिक्षा नीति कहैत अछि- ‘धन आर्जन कर । प्रतिस्पर्धामेँ लाग । दोसरेके हरा आ मौज कर । दोसरसँ जितनाइँ तोहर लक्ष्य थिक । सिद्धान्त घोक । जतेक रटभी, ओतक सफल हैबही । किछो होय, किछा होय, पैघके मान, छोटके माया कर । जगतमे नितान्त गौरवशाली व्यक्ति बन । तोँ विशाल लोग बन । लक्ष्मीप्रसाद बन । सेक्सपियर बन । तोँ आइन्सटाइन, न्यूटन, म्याडम क्युरी होबाक चाही । तोरा राम, जिसस, मोहम्मद, बुद्ध, शिवजी बनैके छौ । तोँ ई बन, तोँ ओ बन मुदा तोँ जेहेन छ, तेहेन बनबे नहि कर ।’ चेली ! एना मानवके अहङ्कारी बनैल बाध्य कैने छै । महत्वाकाङ्क्षी बनाने छै । अपन स्तर भुलिक यमपुरीमेँ महल ठाड करैके विचार सम्प्रेषण केने अछि । दिमागमे भुस भरिदेने छै । अपन वैयक्तिक पहिचान माटिमेँ मिलाक दोसरेक अनुकरण क’क खुस आ मस्त रहैला परैत कहैत अछि ।

दोसरदिस, शैक्षिक प्रशासन सेहो ‘कागजमेँ जेहेन छै तेहेने करबै करब’ कहैत अछि । मुदा, व्यवहारमेँ राजनीतिक कुरूप खेल दोहाराबैत रहत अछि । विद्यालय व्यवस्थापन समितिके नाममे, शिक्षक-अभिभावक संघ, शिक्षक/कर्मचारी नियुिक्त आ बर्खास्ती प्रकरण हरठाम राजनीति करैत अछि । क्षमताके नहि, पैसाके कदर अछि । धाकधक्कु आ सोर्सफोर्सके बोलवाला अछि । बिना राजनैतिक आडभरोसाके शैक्षिक जगत्के कलङ्कित करैके ककरो हिम्मत नहि भ’सकैत अछि । कोनो कथित शिक्षाशास्त्रीके हिम्मत नहि भ’सकैत अछि ।

शिक्षक पढाबैत रहैत अछि, विद्यार्थी सुनैत रहैत अछि । अपना की पढारहल छी, शिक्षकके नहि बुझल अछि । कि सुनिरहल छी ओ बात विद्यार्थीसभके नहि बुझल रहैत अछि । बहुत शिक्षकसभ तलबभत्ता केलेल विद्यालय जाति रहैत अछि, विद्यार्थीसभ परिवार’क मोन राखैल कक्षामेँ जम्मा होइत रहैत अछि । शैक्षिक संस्थामे शिक्षक आ विद्यार्थीसभ शैक्षिक गन्तव्य बमोजिम चलिरहल अछि या नहि अछि तकर बारेमेँ विद्यालय संस्थापक/अध्यक्षसभ बेखबर अछि । कारण, सरकारीके राजनीति कर आ निजीके धन जम्मा कर भ’जाइत अछि ! किया नबका सोचक साथ आगु बढ ल माथ दुखायल जाय ! किया निक शिक्षक चाही, किया शिक्षकके वैज्ञानिक तालिम चाही ? उपरी तहक शैक्षिक प्रशासन अपने नशामा धुत्त अछि, ओकर बारी बर्बाद नहि होयत । एमर बेचारा राजासभ मरए या बेचारी रानीसभ लटकए, ककरो कोनो मतलब नहि अछि !

नहि त शिक्षकसभ तालिम प्राप्त होइतैथ, दैनिक पाठयोजनाक साथ विविध शैक्षिक सामग्री ल’क कक्षामेँ उपस्थित होइतै । कोणकोणसँ विश्लेषण करैत आ विद्यार्थी केन्द्रित भ’क शिक्षण करतैथ । एकटा गन्तव्य पक्रैक विद्यार्थीके ओही गन्तव्यपर पहुचाक रहतैथ । विद्यार्थीसभ सेहो अपन-अपन दिशा आ दशाक बारेमेँ ख्याल करैथ । अपनाके तन आ मोनसँ ओहिदिस निर्देशित करैथ । थोरबहुत शिक्षा भूतसँ सेहो लैथ मुदा ध्यान वर्तमानपर एकत्रित रहैथ । अभिभावक सेहो अपन बैवाबुच्चीसभके रखबारी करैथ । अनुकूल शैक्षिक वातावरणक सिर्जनामे महत्वपूर्ण भूमिका खेलाइथ ।

मुदा, चेली ! कि करूँ ! शैक्षिक प्रशासन अपने मात्रे टेढ नहि छै , कपटी सेहो अछि । राजनैतिक छाहमेँ रहैक कलङ्कित काज करैबला पुरस्कृत होइत अछि, नीति, कर्तव्य आ दायित्वबमोजिम कार्यसम्पादन करैबला राजनैतिक बर्चस्वक अभावमेँ ओझेल भ’जाइत अछि । गुरु राजनीति करैत छथि आ विद्यार्थीसभके सेहो राजनीति सिखाबैत अछि । गुरु अहङ्कारी छथि आ अहङ्कारीके खेल प्रदर्शन करैत छथि । समाज आन्हर अछि, कपटी अछि, जाली अछि, स्वार्थी अछि । पजरल आगि मात्रे देखैत अछि । टमटम’क घोडाजेकाँ एके दिस देखैत अछि आ आजुक विद्यार्थीसभक जीवनके एके कोणसँ अवलोकन करैत अछि । फलस्वरूप तीव्र असन्तुष्टी देखा परैत अछि । आक्रोश पैदा होइत अछि । समाजक हेपाहा आ चेपाहा प्रवृति एवं असम्भव सपनासभक महत्वाकाङ्क्षी महलसँ चिपाक आजुक युवासभ/विद्यार्थीसभ जीवनलीला समाप्त कर उद्यत भ’ जाइत अछि । किछु हिनताबोधी भ’क जिअ बाध्य होइत अछि । कियो हिंस्रक रस्ता अपना’क नामके बदनाम क’रहल छथि ।

हँ त चेली ! मुदा तोरामेँ हिनताबोधी भावना नहि जन्मल छल । हिंस्रक विचार सेहो नहि उब्जल । मोन कठोर बनाक तोरा गिज्याबैबला समाजक मँुह बन्द होइबला जवाफ नहि देलहक । तोहर प्रेमपूर्ण स्वभावने आओर कोना रस्ता नहि चुन सकल । फलस्वरूप, तोहर सहारा बनल एकटा छोटछीन गम्छा । घरके दलिनमेँ प्राण…. । भाइसभ क्रिकेट खेलैल हमर डेरालग आएल मौका पर, माँ काजमेँ व्यस्त रहल आ बाबुजी जागिरक सिलसिलामेँ घरबाहर गेल अवसरक भेटलह । ओ निर्दोष गला गम्छीके एकटा फेरसँ कसल, दोसर फेरसँ दलिनमे बाँनलह आ माँबाप, भाइबहिन, इष्टमित्र, साथीसङ्गी किछु नहि कहिक कुदि गेल । माँ सेहो नहि कहि सकलह । कठै ! सुशील विचारसँ निर्मल हृदयक सोझ राजमार्ग चुनलह ।

फागुमे साथीसङगीके लगेलाह रङ्ग शरीरभरि रहते छल । जीवनभरके लेल सिथ रङ्गाबैके दिन सेहो लगभग तोकैयेबला रहए । कह, चेली ! ई तोँ कि केलहक ? केहेन विपतमे देलहक ? एकर जिम्मेवारी के कतेक-लेत ? के कतेक-कतेक पश्चात्ताप करत ? के कतेक-कतेक पाठ सिखत ? जवाफको प्रतीक्षामे छी ।

अन्तमे चेली ! तोहार लगाएल मेहेँदी हमर गरिमाके हातमे हुबहु अछि । ओकर मुखडापर तोरे हँसि, तोरे सुन्दरता, तोरे शिष्ट चञ्चलता देखैत छी । हमर कान घरिघरि तोरे नम्र, कोकिल स्वर सुनिरहल अछि, तेहेन लागैत अछि । मुदा, हमर बेटी तोहर अकल्पनीय देहवसानप्रति बेखबर अछि । छोटे अछि, मुदा बहुत बात बुझैत अछि । महतारी लक्ष्मी ओकरा भ्रममे राखने अछि । हे लक्ष्मी ! ओना नहि करूँ कहला पर ओ कहैत छथि ‘बेटी गरिमा कानैत अछि, चेलीके ताकैत अछि, ओकर मँुहपर दुःख’क कारि बादल मडारैत हम नहि देख सकैत छी, अपना कतबु दुःखी छी, मुदा ओकरा कोनो विषाद नहि दैके प्रयासमेँ रहैछी ।’ कह चेली ! हम की करूँ ? कानैके मोन करैत अछि, नहि सकै छी । समाजका सीमासभ रोकैत छेकैत अछि । मात्रे लिखैत रहैके, लिखैत रहैके, सत्य संसारके देखाबैत रहैके मोन करैत अछि ।

ले त चेली ! कतबु लिख क समाप्त नहि होयत । इहे शब्दसभसँ तोरा याद करैत आ तोहोर परलोकी आत्माके लेल शान्ति क लेल प्रार्थना करैत छी । आइन्दा ई कान, ई दिमाग आ ई जीवनमे एहन घटना सुन नहि परए, देख नहि परए आ भोग त परबे नहि करए कहैत पत्रान्त करै छी । परलोकी तोरा हार्दिक श्रद्धाञ्जली ! तोहर शोकसन्तप्त इहलोकी परिवारजनमेँ हार्दिक समवेदना !! धन्यवाद !!!

(नेपालीसँ मैथिली अनुवाद लेखक स्वयम्सँ मुदा आयुषी झाक सहयोगमे)

नन्दलाल आचार्य

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *