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मिथिलाक किसान
editor — Sat, 01/16/2021 - 13:48
हम छि मिथिलाक किसान, किसानी हमर काम यौ
करैत छी माइटक पूजा, माइट हमर प्राण यौ
मानैत छी माइटक अपन भगवान यौ
हम छी मिथिलाक किसान, किसानी हमर काम यौ ।
होयत वर्षा तब धोती, कुर्ता, पाग लगायब यौ
हर, कोदाइर सङ्ग खेतमे पसिना बहायब यौ
रोटी, चटनी जलखै खायब यौ
हम छी मिथिलाक किसान, किसानी हमर काम यौ ।
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ठंडीक एक कप गरम चाय
editor — Sat, 01/16/2021 - 13:39
ठंडीक एक कप गरम चाय
देखिक ओकरा मोन मुसिकाय
छुवन सँ ओकर तन झुमिजाय
ठंडीक एक कप गरम चाय
छुवन सँ ओकर मचलल ठोर
ससरि हृदयमे कयलक भोर
अँग अँग गुदगुदायल मोर
खुशीक नहि अछि कुनो ओर
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विनीत रचित मैथिली हाइकु पर एक विहंगम दृष्टि (समिक्षा)
editor — Tue, 01/05/2021 - 20:12
विनीत ठाकुर निरन्तर क्रियाशील स्रष्टाक रुप मे एकटा परिचित तथा चर्चित नाम अछि । एहि क्रम मे ओ मैथिली हाइकु संग्रह लऽकऽ पाठक समक्ष प्रस्तुत भेल छथि । हुनक एहि कृति मे कुल १०० हाइकु संग्रहीत अछि ।
हाइकु के संग–संग ओ कविता, कथा, गीत, लेख, निबन्ध आदि विधा मे कलम चलाबऽ मे क्रियाशील छथि । मैथिली आओर नेपाली साहित्य जगत् मे हुनक बहुआयामिक साहित्यिक व्यक्तित्व खूब लोकप्रिय छनि ।
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धूर अहा बरद छी (मैथिली व्यङ्ग्य कविता)
Dinesh Yadav — Fri, 12/18/2020 - 18:23
दोसरेके लेल बहब,
खुट्टामे बानहल रहब,
कुट्टीसानी लेल टुकुर–टुकुर ताकब,
मलिकवाक दाना लेल कच्छर कातब,
डिरिएबाक आदत बनाएब,
तिरपित ओहीमे रहब,
झुठ नई छै शनिश्चराक कहब–
धूर अहा बरद छी ।१।
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मिथिला मधेशक पावनि छठि
editor — Thu, 12/17/2020 - 19:45
गाम समाज, एकही ठाम पुजे
छठि पावनि, बड विशेष छै
डुबैत सुरुजसँग, उगैतके पुजब
अही पावनिके, दिव्य सन्देश छै
ब्राह्मण क्षेत्री वैश्य हरिजन
अर्घ देवलाय, सँगसँग ठार छै
नर नारी जवान वृद्ध सभकेउ
परमेश्वरीके, करैत प्रणाम छै
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भरदुतिया (लघुकथा)
editor — Wed, 12/09/2020 - 19:12
भरदुतियाक दिन छलै । भोरे सबेरे सब गोटे उठि आहारबहार निकललै । एने गोपाल सुतले छलै ।
माइः (आवाज लगेलकै) 'बाउ, बाउ रे बाउ!गोपला छी रै? भोर नै भेलै ?'
गोपाल: आँहि.., (ऐँठी मारैत) , हँ उइठ गेलियै ।
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मिथिलाके दानापानिए बताह छै
Dinesh Yadav — Sat, 12/05/2020 - 09:43
जकरा भेटल बन्दुक सेहा हबलदार छै,
दोसरके अल्पज्ञानी अपनेटाके सर्वज्ञानी मानै छै,
गुण-दोषके पहिचान नई छै,
आत्मप्रशंसा गत्तर-गत्तर भरल छै,
डेग डेग सर्वेसर्वाके अभिमानी छै,
ठोप-कमण्डल बड भारी छै,
मिथिलाके दानापानीए बताह छै ।
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हाइकु अन्तरिक्षक एकटा नव उपग्रह : वसुन्धरा
editor — Wed, 12/02/2020 - 19:22
गढिकऽ रचना करब हमरा कहियो नीक नहि लागल । हम ओहन रचना के गढ़ब बुझैत छी जाहि मे लेख्य अनुशासनक बात कहल जाइत होइक । यथा गजल लेखन, कोनो विशेष अवसरक गीत लेखन आ कविता लेखन । आब त तेहने काव्य अनुशासनक परिधि मे रहि नव प्रयोग हाइकु लेखन आयल अछि ।
मैथिली भाषाक क्षेत्र मे सेहो हाइकु बेस लोकप्रिय भेल जा रहल अछि । जापान सँ आएल ई काव्य विधा हिन्दी, नेपाली होइत मैथिली भाषा मे सेहो प्रयोग होमय लागल अछि । एहि विधा के पुस्तकाकार प्रकाशन होइत अछि ।
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दुर जो कोनाक बेमत भेल छी ?
editor — Sat, 11/28/2020 - 20:26
दशमीबाट तकिते बितल कोजगराक चान उगादीय
फुल हमर फुलल अछि आबि अँहा आँगन गमकादीय
धोती कुर्ता गमछामे अँहा लगबै जेना नवका वर यो
ललितगर नुवा पहिर हमहु बटबै पान मखान यो
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ललका बेल्ट (मैथिली कथा)
editor — Sun, 11/22/2020 - 14:02
~माए गै ! हमहूँ हटिया जेबै !
~से किया रे ? नइँ जो, साँझ पैड गेलै, दोसर दिन जाइहें । हे तोराल' हम जलखै नने एबौ, फोँफी सोहो नन' लएबौ ।
~नइँ जोऽऽ, हम जेबेऽ करबै । नाइँ, नाइँ, नाइँ..... । (काइनते काइनते)
~ मर, नै कान न' रे । आब कि करबै ? कमलपुर बाली हमरा खातिर रूकल हेतै । ले,ले चल चुप हो, चल । पहिलैये लेट भ' गेलै ।
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बुढापा (बृद्धावस्था)
editor — Sun, 11/08/2020 - 12:23
व्याकुल भ हमर मन
पुछि रहल भगवान सँ
किया भटकि गेल मानव
आई अपन इमानसँ ।
बृद्ध भेनाई कोनो पाप नहि
तइयो ई विषक प्याला अछि
वृद्ध क खातिर कोनो सन्तान
आई समय नई निकालत अछि ।

अपने औथिन गाम (मैथिली कविता)
editor — Tue, 11/03/2020 - 20:26
आब शरद्क ऋतु आगमनके एहसास होइय
बढी जाइय खुशी आनन्दके आभास होइय
वितरहल विरहक घरी अपने औथिन गाम
बाट जोहैत चञ्चल नयन करतै आब आराम
उथल पुथल अखने सँ मचि गेल अही मोनमे
सुरुजक किरण सेहो कहैय बहुत किछु भोरमे
नही बसमे किछुओ हमर धडकन छै बेहाल
शेष रहितो चारि दिन मचा रहल छै उदफाल
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चारिटा मैथिली हाइकु - २५ (चंदन गाछ)
editor — Sat, 10/24/2020 - 08:19
९७.
चंदन गाछ
चुनमुन चिड़ैया
ससरे साँप ।
९८.
धनुषा धाम
बहैत बाल गंगा
पवित्र भूमि ।
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ने कहके आँट रखैत छी (मैथिली गजल)
editor — Sun, 10/11/2020 - 11:27
भुलि नई सकैछी ने कहके आँट रखैत छी
मोन ही मोन सही बहुत याद करैत छी
व्याकुल होइछी जखन देखलाय सुरतके
अँहाके डि.पी. के जुम कय कअ देखैत छी
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बन्द करू दहेज प्रथाके (गीत)
editor — Tue, 09/22/2020 - 17:53
बन्द करू बन्द करू बन्द करू
दहेज प्रथाके अन्त करू
करय छी बरागत सत सत प्रणाम
हटाऊ सब मिलिक दहेजक नाम ।
महामांस बेची जुनी कटु फुफाकर
आदर्श ब्याह करू बनु उदार
पुत्र अहाके रत्न समान
हटाऊ सब मिलिक दहेजक नाम ।
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