सुधा मिश्र
एक नारीक समापन सँ तृप्ति भेटल

जे जनकक राजदुलारी छली
नान्हिएटामे शिवधनुष उठेली
गुणी विवेकी बलशाली छली
राज अयोध्याके महारानी छली
देशक वीर सिपाही हम

आगु हरपल बढैत रहलौ
आगु पलपल बढैत रहब
देशलेल सदिखन जिबैत रहलौ
देशेलेल सदैब जिबैत रहब
कोना सुतल छी विधाता?

नही डुबैक ककरो भरोसा
नही टुटैक मोनक आशा
देखबियौ किछु तँ हे दाता
कोना सुतल छी विधाता ?
मासुमक कसुर कहिदिय हे विधाता

पिता जिनका कहल जाति छै अहिठाम साक्षात् भगवान
तहन ओ अपने जन्माओल सँ एना किए छथि अंजान?
बुझल नही छनि जिनका कनियो ककरा कहैछै नाता?
तखन ओहन मानुष किए बनैछथि किनको जन्म दाता?
टेमी दगेतैन

लाल सारीमे हरिएर किनारी
पहिरि ओढिए धिया सुकुमारी
जखन पुजलाय बैसल पावनि
गोरनार धिके निहारल रघुरारी
आयल मधु सावन केर मास

आयल मधु सावन केर मास
पुरब सभहक मोनक आश
पहिराक हरिएर हरिएर चुरी
मिटालीय बाँचल कुचल दुरी
मोन मोर हरियाल अछि

बागबोन हरिएर गाछ वृक्ष हरिएर
माटिक हरियरी सँ नभ भेल हरिएर
हरिएर नुवामे मोन मोर हरियाल अछि
हरिएर पिएर चुरिक खनक कमाल अछि
हमर कनियाँ एना क रहे

कानमे झुलैत बालिरहैक
ठोर पर सदिखन लालिरहैक
आँचर ओकर लहरातिरहै
कारी लट उडियातिरहै
हमर कनियाँ एना क रहे
माँगिलेबै अहिबात गे

पावनि कय हम
पियाके दुलारी
सेनुर पिठारक थाप दक
पुजबै वरक गाछ गे
माँगि लेबै अहिबात गे
विध्वंस हमरा पसिन नहि

विध्वंस हमरा पसिन नहि
सृजनके हम अभिलाषी छी
प्रकृतिके सदैब सातत्य देब
अटल अठोट मोनमे लेने छी
चार मुक्तक (हे नुतन वर्ष)

हे नुतन वर्ष
हे नूतन वर्ष नवीन उमंग लअबिहा
जीवलेल जीवके नव तरंग लअबिहा
जुरेबा तुहु जुरायल देखि धरती गगन
कलशमे सजाक प्रह्लाद प्रसंग लअबिहा
पाँच मुक्तक (खेलबै होरी)

१) खेलबै होरी नव नुवामे
भरिक सिनेहिया मीठ पुवामे
खेलबै होरी हम नव नुवामे
चलि आऊ प्रीतम गाम अपन
अनुराग सजोनेछी मनुवामे
जँ फगुवामे एथिन परदेशिया ?

वसन्त लय अँगना सजेबै
मीठ-मीठ पुआ हम पकेबै
लाल-हरियर रंग घोरिलेबै
सब रंगक अबीर उडेबै
हमरो वर चाहिँ हरहर महादेव

नहि चाहिँ मोरा सीताके राम सन
नहि चाहि मोरा राधाके श्याम सन
नीक लगैय हमरा गौराके प्राणनाथ
चाहिँ पतिदेव हमरो भोलेनाथ
चार मुक्तक (हमरो निंद कहाँ ?)

१) हमरो निंद कहाँ ?
जागल रहलौ अँहा तँ हमरो निंद कहाँ ?
व्यक्त कलैछी अँहा हमरा शब्द कहाँ?
बिन डोरेके कसल इ मजगुत गिरह
बिनु अँहाके धडकने हमरो साँस कहाँ?