Skip to content

सुधा मिश्र

एक नारीक समापन सँ तृप्ति भेटल

  • by
SudhaMishra

जे जनकक राजदुलारी छली
नान्हिएटामे शिवधनुष उठेली

गुणी विवेकी बलशाली छली
राज अयोध्याके महारानी छली

Read More »एक नारीक समापन सँ तृप्ति भेटल

मासुमक कसुर कहिदिय हे विधाता

  • by
SudhaMishra

पिता जिनका कहल जाति छै अहिठाम साक्षात् भगवान
तहन ओ अपने जन्माओल सँ एना किए छथि अंजान?
बुझल नही छनि जिनका कनियो ककरा कहैछै नाता?
तखन ओहन मानुष किए बनैछथि किनको जन्म दाता?

Read More »मासुमक कसुर कहिदिय हे विधाता

मोन मोर हरियाल अछि

  • by
SudhaMishra

बागबोन हरिएर गाछ वृक्ष हरिएर
माटिक हरियरी सँ नभ भेल हरिएर
हरिएर नुवामे मोन मोर हरियाल अछि
हरिएर पिएर चुरिक खनक कमाल अछि

Read More »मोन मोर हरियाल अछि

चार मुक्तक (हे नुतन वर्ष)

  • by
SudhaMishra

हे नुतन वर्ष

हे नूतन वर्ष नवीन उमंग लअबिहा
जीवलेल जीवके नव तरंग लअबिहा
जुरेबा तुहु जुरायल देखि धरती गगन
कलशमे सजाक प्रह्लाद प्रसंग लअबिहा

Read More »चार मुक्तक (हे नुतन वर्ष)

पाँच मुक्तक (खेलबै होरी)

  • by
SudhaMishra

१) खेलबै होरी नव नुवामे
भरिक सिनेहिया मीठ पुवामे
खेलबै होरी हम नव नुवामे
चलि आऊ प्रीतम गाम अपन
अनुराग सजोनेछी मनुवामे

Read More »पाँच मुक्तक (खेलबै होरी)

हमरो वर चाहिँ हरहर महादेव

  • by
SudhaMishra

नहि चाहिँ मोरा सीताके राम सन
नहि चाहि मोरा राधाके श्याम सन
नीक लगैय हमरा गौराके प्राणनाथ
चाहिँ पतिदेव हमरो भोलेनाथ

Read More »हमरो वर चाहिँ हरहर महादेव

चार मुक्तक (हमरो निंद कहाँ ?)

  • by
SudhaMishra

१) हमरो निंद कहाँ ?

जागल रहलौ अँहा तँ हमरो निंद कहाँ ?
व्यक्त कलैछी अँहा हमरा शब्द कहाँ?
बिन डोरेके कसल इ मजगुत गिरह
बिनु अँहाके धडकने हमरो साँस कहाँ?

Read More »चार मुक्तक (हमरो निंद कहाँ ?)

ठंडीक एक कप गरम चाय

ठंडीक एक कप गरम चाय
देखिक ओकरा मोन मुसिकाय
छुवन सँ ओकर तन झुमिजाय
ठंडीक एक कप गरम चाय

छुवन सँ ओकर मचलल ठोर
ससरि हृदयमे कयलक भोर
अँग अँग गुदगुदायल मोर
खुशीक नहि अछि कुनो ओर

मिथिला मधेशक पावनि छठि

गाम समाज, एकही ठाम पुजे
छठि पावनि, बड विशेष छै
डुबैत सुरुजसँग, उगैतके पुजब
अही पावनिके, दिव्य सन्देश छै

ब्राह्मण क्षेत्री वैश्य हरिजन
अर्घ देवलाय, सँगसँग ठार छै
नर नारी जवान वृद्ध सभकेउ
परमेश्वरीके, करैत प्रणाम छै