पाँच मुक्तक (खेलबै होरी)

१) खेलबै होरी नव नुवामे
भरिक सिनेहिया मीठ पुवामे
खेलबै होरी हम नव नुवामे
चलि आऊ प्रीतम गाम अपन
अनुराग सजोनेछी मनुवामे
१) खेलबै होरी नव नुवामे
भरिक सिनेहिया मीठ पुवामे
खेलबै होरी हम नव नुवामे
चलि आऊ प्रीतम गाम अपन
अनुराग सजोनेछी मनुवामे
वसन्त लय अँगना सजेबै
मीठ-मीठ पुआ हम पकेबै
लाल-हरियर रंग घोरिलेबै
सब रंगक अबीर उडेबै
वृद्धाश्रम आ अनाथ आश्रमक चर्च छोटेसँ गप्पक क्रममे सुनैत छलहुँ । उमेरकसँग मोनमे एकटा उत्कण्ठा होइत रहल ओही ठाम जाकऽ ओतुका वास्तविक स्थिति देखवाक ।
आखिर अपना लोकसँ तिरस्कृत व्यक्तिकेँ ओही ठाम केहन अवस्थाक सामना करए पड़ैत छन्ही ।
Read More »बुढेसक थेघ (मैथिली कथा)नहि चाहिँ मोरा सीताके राम सन
नहि चाहि मोरा राधाके श्याम सन
नीक लगैय हमरा गौराके प्राणनाथ
चाहिँ पतिदेव हमरो भोलेनाथ
एहेन पञ्चैती एहिसँ पहिने गाममे कहिओ भेल होए, से मोन नही पडिरहल छैक ककरो । गाममे एहेन विकट समस्यो पहिने कहिओ उपस्थित भेल हो, से गामक सबसँ बूढ आ परोपट्टाक प्रतिष्ठित व्यक्ति भुटकुन मुखियाकेँ सेहो स्मरण नही छैन्ह ।
Read More »समझौता१) हमरो निंद कहाँ ?
जागल रहलौ अँहा तँ हमरो निंद कहाँ ?
व्यक्त कलैछी अँहा हमरा शब्द कहाँ?
बिन डोरेके कसल इ मजगुत गिरह
बिनु अँहाके धडकने हमरो साँस कहाँ?
बौवा चोरी कैरक, केलकै पास
आइ रोडप छिलैय घाँस ।
माइ बाबुक, छल कतेक आस
तोइर देलक, सब विश्वास ।
विनीत ठाकुर निरन्तर क्रियाशील स्रष्टाक रुप मे एकटा परिचित तथा चर्चित नाम अछि । एहि क्रम मे ओ मैथिली हाइकु संग्रह लऽकऽ पाठक समक्ष प्रस्तुत भेल छथि । हुनक एहि कृति मे कुल १०० हाइकु संग्रहीत अछि ।
हाइकु के संग–संग ओ कविता, कथा, गीत, लेख, निबन्ध आदि विधा मे कलम चलाबऽ मे क्रियाशील छथि । मैथिली आओर नेपाली साहित्य जगत् मे हुनक बहुआयामिक साहित्यिक व्यक्तित्व खूब लोकप्रिय छनि ।
गढिकऽ रचना करब हमरा कहियो नीक नहि लागल । हम ओहन रचना के गढ़ब बुझैत छी जाहि मे लेख्य अनुशासनक बात कहल जाइत होइक । यथा गजल लेखन, कोनो विशेष अवसरक गीत लेखन आ कविता लेखन । आब त तेहने काव्य अनुशासनक परिधि मे रहि नव प्रयोग हाइकु लेखन आयल अछि ।
मैथिली भाषाक क्षेत्र मे सेहो हाइकु बेस लोकप्रिय भेल जा रहल अछि । जापान सँ आएल ई काव्य विधा हिन्दी, नेपाली होइत मैथिली भाषा मे सेहो प्रयोग होमय लागल अछि । एहि विधा के पुस्तकाकार प्रकाशन होइत अछि ।
~माए गै ! हमहूँ हटिया जेबै !
~से किया रे ? नइँ जो, साँझ पैड गेलै, दोसर दिन जाइहें । हे तोराल’ हम जलखै नने एबौ, फोँफी सोहो नन’ लएबौ ।
~नइँ जोऽऽ, हम जेबेऽ करबै । नाइँ, नाइँ, नाइँ….. । (काइनते काइनते)
~ मर, नै कान न’ रे । आब कि करबै ? कमलपुर बाली हमरा खातिर रूकल हेतै । ले,ले चल चुप हो, चल । पहिलैये लेट भ’ गेलै ।