मैथिली भाषा
एक नारीक समापन सँ तृप्ति भेटल

जे जनकक राजदुलारी छली
नान्हिएटामे शिवधनुष उठेली
गुणी विवेकी बलशाली छली
राज अयोध्याके महारानी छली
ककर कतेक कमजोरी !

प्रिय चेली,
सन् २०१२ क मार्च ८ काल्ही मात्रे छल आ सेहो काहिल्ये खतम भेल । पैघपैघ नेतानेतृ आ नीति निर्मातासभ भव्य मञ्चपर भव्य बातचितसभ केलाह । ओ बातचितसभ आलिसान महलक मखमली विस्तरापर बैसक कयल गेल छल ।
देशक वीर सिपाही हम

आगु हरपल बढैत रहलौ
आगु पलपल बढैत रहब
देशलेल सदिखन जिबैत रहलौ
देशेलेल सदैब जिबैत रहब
कोना सुतल छी विधाता?

नही डुबैक ककरो भरोसा
नही टुटैक मोनक आशा
देखबियौ किछु तँ हे दाता
कोना सुतल छी विधाता ?
मासुमक कसुर कहिदिय हे विधाता

पिता जिनका कहल जाति छै अहिठाम साक्षात् भगवान
तहन ओ अपने जन्माओल सँ एना किए छथि अंजान?
बुझल नही छनि जिनका कनियो ककरा कहैछै नाता?
तखन ओहन मानुष किए बनैछथि किनको जन्म दाता?
टेमी दगेतैन

लाल सारीमे हरिएर किनारी
पहिरि ओढिए धिया सुकुमारी
जखन पुजलाय बैसल पावनि
गोरनार धिके निहारल रघुरारी
आयल मधु सावन केर मास

आयल मधु सावन केर मास
पुरब सभहक मोनक आश
पहिराक हरिएर हरिएर चुरी
मिटालीय बाँचल कुचल दुरी
सुकेशनि (लघुकथा)

मंदिर में भगवान कऽ प्रतिमा के आगु ठाड सुकेशनि के आँखि सँ नोर झर–झर खसई छल । तीन मास पहिले के बात सब स्मरण होमय लागल ।
Read More »सुकेशनि (लघुकथा)केहेन उजाड (गजल)

केहेन उजाड जँका सुनसान देखैछी
मात्र पत्थरे छै कहाँ भगवान् देखैछी ?
नाम जपिक खाइबला भेलै बुद्धिमान्
भ्रष्ट पदलोलुप मात्रे महान् देखैछी ।
मोन मोर हरियाल अछि

बागबोन हरिएर गाछ वृक्ष हरिएर
माटिक हरियरी सँ नभ भेल हरिएर
हरिएर नुवामे मोन मोर हरियाल अछि
हरिएर पिएर चुरिक खनक कमाल अछि
कन्या पूजन (लघुकथा)

नवरात्रि शुरु भऽ गेल अछि आ हमर लाल काकी दु दिन पहिने सँ घर आँगन नीप कऽ पूजा पाठ के सब ओरियान कऽ लेने छथि ।
Read More »कन्या पूजन (लघुकथा)हमर कनियाँ एना क रहे

कानमे झुलैत बालिरहैक
ठोर पर सदिखन लालिरहैक
आँचर ओकर लहरातिरहै
कारी लट उडियातिरहै
हमर कनियाँ एना क रहे
माँगिलेबै अहिबात गे

पावनि कय हम
पियाके दुलारी
सेनुर पिठारक थाप दक
पुजबै वरक गाछ गे
माँगि लेबै अहिबात गे
फागुन के रंग (गीत)

लागल गोरी के चुनरी मे फागुन के रंग
ठोर गुलाबी ओकर खिलल अंग–अंग
खन–खन चुरी खनका कऽ फगुआ के गीत गावे
छम–छम पायल छमका कऽ सभ के नचावे
पातर डाँर लचकावे त बाजे मृदंग
विध्वंस हमरा पसिन नहि

विध्वंस हमरा पसिन नहि
सृजनके हम अभिलाषी छी
प्रकृतिके सदैब सातत्य देब
अटल अठोट मोनमे लेने छी
नहि भटकु धामे–धाम

नहि भटकु धामे–धाम राखु मानवता पर ध्यान
लागु दीन–दुखी के सेवा मे भेटत ओतही भगवान
रघुवर दुलहा के

रघुवर दुलहा के दुलहिन चान हे
राम–सीया के जोडी दिव्य समान हे
पारल अरिपन गजमोती सजाओल
शुभ–शुभ गाउ सखी छिटु दूभि–धान हे
चार मुक्तक (हे नुतन वर्ष)

हे नुतन वर्ष
हे नूतन वर्ष नवीन उमंग लअबिहा
जीवलेल जीवके नव तरंग लअबिहा
जुरेबा तुहु जुरायल देखि धरती गगन
कलशमे सजाक प्रह्लाद प्रसंग लअबिहा