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अपने औथिन गाम (मैथिली कविता)


आब शरद्क ऋतु आगमनके एहसास होइय
बढी जाइय खुशी आनन्दके आभास होइय
वितरहल विरहक घरी अपने औथिन गाम
बाट जोहैत चञ्चल नयन करतै आब आराम

उथल पुथल अखने सँ मचि गेल अही मोनमे
सुरुजक किरण सेहो कहैय बहुत किछु भोरमे
नही बसमे किछुओ हमर धडकन छ‌ै बेहाल
शेष रहितो चारि दिन मचा रहल छै उदफाल

बिनु पहिरनही पायल सुनाइय छमछमके शोर
हाथक कङ्गना खनैक रहल यी कि भरहल मोर
पवन मुझौसा कोना करैय आँचरसँग खेलवाड
बिनु काजरे गजराके तनमे सजल सोरह शृङ्गार

सम्हार चाहैतछी उठल सभटा सिनेहक आवेग
छुपाक राख नही सकलौ अकरा भित्तर करेज
खौजारहल अछि गामे हमरा कि छै नव बात ?
छुविरहल हमरा दूर डोलल अनुरागक बसात

सुधा मिश्र
जनकपुर -४
धनुषा, नेपाल

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