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एक नारीक समापन सँ तृप्ति भेटल

  • by
SudhaMishra

जे जनकक राजदुलारी छली
नान्हिएटामे शिवधनुष उठेली

गुणी विवेकी बलशाली छली
राज अयोध्याके महारानी छली

से चौदह बरिस वनवने रहली
खाय कन्दमुल जीवनयापन कयली

पत्नी धर्मक पालन कयली
ताहु पुनिताके हरलक रावण

हरिक लगेल अपन भुवन
तैयो मैयाँ सजग भय संयम रखली

दुष्ट मुदैयाके नहि किछु कहली
पलपल श्री रामक बाट जोहली

अपन अस्तित्वके सम्हारिक रखली
वन सँ लौटकाल अग्नि परीक्षा दयली

देखि पुरुषक पुरुषार्थ चुपचाप रहली
लौटि अयोध्या नगरी अयली

उल्हन सिकायत सुन लगली
धोबीक आरोपमे निष्कासित भयली

अपने पतिक परित्याग सहली
जखन ओ गर्भसय छयली

राजकुमारके जन्म वनमे दयली
अद्भुत संस्कार सँ संस्कारी बनेली

दुनु पुत्रक गरिमा तीनु भुवन मचल
देखि अलौकिक बालक रामो भुलल

जे स्वम् लक्ष्मीक अवतार छयली
अपन जीवनक समय वनमे बितेली

प्रकाशमय रहल जाहिठाम छयली
वनहुमे ओ वनदेवी कहेली

हुनक पावन चरण सँ कुटिया हँसल
बाटेघाटे चँहुदिस फुल पसरल

पुजि मैयाके धन्य वाल्मीकि रहल
अपन जीवनके सफल बुझल

ताहुसन देवी देवलेल सफाइ
घरतीमे लेला अपनाके समाइ

तखन अहि दुनियाँके आँखि खुजल
एक नारीक समापन सँ तृप्ति भेटल

सुधा मिश्र
जनकपुर -४
धनुषा ,नेपाल

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