फुली सक्या जन ओइलौइ कि फुल नफुलौ
डुली ग्या अगाउने गरी झौ कि मन नडुलौ
खान त कसैको पनि जन ढल्कौ भाग
यो नबन्या करम ले म् रुवाउदो जाग
हड नाङै छ् पेट् भोकै छ् ठाउँ छैन बास
पराइ का बिराना देश पैसा छैन पास
सङी साथ सुचेकि बेला रुन्छु रात दिन
घर कि सुचेकि बेला धोइ मारदा दिन
नराम्रो कसै कि नहो राम्रो सुची कन
रोइरहनु कसै कि नहो आशु पुछी कन
घर जाउ घरबारी नै पराइ देश सुख नाइ
माचिन्छ जेठ् का धुप सेला बस्न रुख नाइ
जय राज जोशी (दुखी )
दत्तु -९ दार्चुला नेपाल
हाल -अरबको खाडी